सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी हाई कोर्ट के सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के लिए समान पेंशन लाभ का निर्देश दिया, चाहे उनकी नियुक्ति का तरीका या कार्यकाल कुछ भी हो। न्यायालय ने कहा कि संवैधानिक पद के संबंध में 'वन रैंक, वन पेंशन' का सिद्धांत होना चाहिए।

निर्णय में कहा गया कि सभी मामलों में पेंशन के भुगतान में भेदभाव नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को समान पेंशन मिलनी चाहिए। अतिरिक्त न्यायाधीशों को भी उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीशों के समान पेंशन मिलेगी।

प्रधान न्यायाधीश बीआर गवाई और जस्टिस आगस्टिन जार्ज मसीह और के विनोद चंद्रन की पीठ ने यह निर्णय दिया कि पेंशन लाभ में किसी भी प्रकार का वर्गीकरण, चाहे न्यायाधीश बार से आए हों या जिला न्यायपालिका से, या चाहे वे स्थायी या अतिरिक्त न्यायाधीश हों, भेदभावपूर्ण है और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।

सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को समान पेंशन देने की आवश्यकता
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि क्या एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को पूर्ण पेंशन से वंचित किया जा सकता है, अगर उनकी सेवा में अंतर है। प्रधान न्यायाधीश ने 63 पृष्ठों के निर्णय में कहा कि एक रैंक, एक पेंशन का सिद्धांत उच्च न्यायालय के सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को समान पेंशन देने की आवश्यकता है।

पीठ ने कहा कि हम पाते हैं कि जब एक जज हाई कोर्ट के न्यायाधीश के पद पर कार्यभार ग्रहण करता है और संवैधानिक वर्ग में प्रवेश करता है, तो नियुक्ति की तिथि के आधार पर कोई भिन्नता स्वीकार्य नहीं होगी। जब एक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश कार्यरत होता है, तो उनके प्रवेश के स्त्रोत की परवाह किए बिना, उन्हें समान वेतन और भत्ते प्राप्त होते हैं।

पीठ ने कहा कि जब सभी हाई कोर्ट के जज कार्यरत होते हैं, समान वेतन, भत्ते और लाभ के हकदार होते हैं, तो उनके बीच किसी भी प्रकार का भेदभाव स्पष्ट रूप से भेदभावपूर्ण और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।

मामले में कोर्ट ने और क्या कहा?
न्यायालय ने यह भी कहा कि एक न्यायिक अधिकारी जो न्यायिक सेवाओं से हाई कोर्ट का न्यायाधीश बनता है और दूसरा बार के सदस्य का अनुभव लेकर उच्च न्यायालय का जज बनता है, उसको भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। जिला जज के रूप में सेवानिवृत्त होने की तिथि और हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में कार्यभार ग्रहण करने की तिथि के बीच की सेवा में अंतर पेंशन के भुगतान के लिए आधार नहीं हो सकता। ऐसे न्यायाधीशों की पेंशन को हाई कोर्ट के जजों के रूप में प्राप्त वेतन के आधार पर होना चाहिए।

एक व्यक्ति जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त होता है, भले ही उसे नई पेंशन योजना (एनपीएस) लागू होने के बाद राज्य न्यायपालिका में नियुक्त किया गया हो, उसे हाई कोर्ट के न्यायाधीशों के वेतन और सेवा की शर्तों के अधिनियम, 1954 के तहत सामान्य भविष्य निधि (जीपीएफ) का लाभ प्राप्त होगा।

पीठ ने कहा कि स्थायी न्यायाधीश और अतिरिक्त न्यायाधीश के बीच कृत्रिम भेदभाव करना परिभाषा के साथ अन्याय होगा। इसलिए, हम यह स्पष्ट करते हैं कि उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त अतिरिक्त न्यायाधीशों को भी समान मूल पेंशन, अर्थात 13.50 लाख रुपये प्रति वर्ष प्राप्त होगी। पीठ ने फैमिली पेंशन और ग्रेच्युटी के मुद्दे पर इसे स्पष्ट रूप से मनमाना करार दिया।